इरम नरसंहार : भारत का दूसरा जलियांवाला बाग
इरम ओडिशा के भद्रक जिले के बासुदेवपुर में एक छोटा सा गांव है। यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे रक्त तीर्थ इरम (रक्त का तीर्थ) और भारत का दूसरा जलियाँवाला बाग भी
कहा जाता है।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका:
इरम गाँव दूर, दुर्गम और शहरों से दूर था | बंगाल की खाड़ी और दो नदियों गामोई और कंसबन से घिरा हुआ था ।
इन प्राकृतिक सीमाओं के कारण से पुलिस और प्रशासन वहां नहीं पहुंच सका
गोपबंधु दास, हरेकृष्ण महताब और अन्य जैसे कांग्रेसी नेता भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में संदेश साझा करने के लिए सार्वजनिक बैठकों के लिए इरम का इस्तेमाल करते |
1942 सामूहिक नरसंहार की घटना:
28 सितंबर 1942 को इरम मेलन ग्राउंड में ब्रिटिश राजा के खिलाफ एक बड़ी सभा आयोजित की गई थी।
इस घटना को लेकर बासुदेवपुर थाने के डीएसपी ने अपने पुलिस बल के साथ एराम मैदान की ओर मार्च किया |
डीएसपी ने जमीन पर पहुंचने के बाद नागरिकों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया.
प्राकृतिक सीमाओं से घिरा होने के कारण लोग वहां से भाग नहीं पा रहे थे|
कुछ ही मिनटों में 29 लोगों की मौत हो गई | मौके पर और 50 से अधिक घायल हो गए।
इस घटना के लिए, इरम को रक्त तीर्थ इरम (रक्त का तीर्थ) के रूप में भी जाना जाता है।
दूसरा जलियाँवाला बाग माना जाता है।
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